कश्मीर के उन बच्चों की कहानी जिनके पिता गोलियों के भेंट चढ़ गए
यह कहानी है कश्मीर के कुछ यतीमख़ानों की. यहां ज़िन्दगी के दोराहे पर खड़ी एक पीढ़ी अब जवान हो रही है. इन यतीमख़ानों में हमारी मुलाकात ऐसे तमाम बच्चों से हुई. साएमा एक साल की थी, जब उसके पिता भारतीय सेना के साथ मुठभेड़ में मारे गए. आज वो बड़ी हो चुकी है...समझदार हो चुकी है...लेकिन यह मानने को तैयार नहीं है कि उसके अब्बू ने जो किया था, गलत किया था. कुछ ऐसी ही कहानी कई और बच्चों की भी है.
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