'पुलिसवाला हूं...पुलिस ने ही बर्बाद की जिंदगी'
मुंबई मुंबई में ड्रग माफिया बेबी पाटणकर से जुड़े केस में चार साल पहले कई लोग गिरफ्तार हुए थे। उनमें ऐंटी नार्कोटिक्स सेल से जुड़े सीनियर इंस्पेक्टर सुहास गोखले, गौतम गायकवाड, सुधाकर सारंग, ज्योतिराम माने और यशवंत पराटे के नाम भी शामिल थे। मुंबई क्राइम ब्रांच ने पिछले हफ्ते जो चार्जशीट कोर्ट में पेश की, इनमें इन सभी पुलिस वालों के पक्ष में क्लोजर रिपोर्ट पेश की। इसके बाद इन सभी को बरी कर दिया गया। इन्हीं पुलिस अधिकारियों में से एक सुहास गोखले ने बताया कि उन्हें न्याय पाने के लिए 4 साल और 2 महीने लगे। यह न्याय भी उन्हें तब मिल पाया, जब कानून से हर लड़ाई लड़ने के बाद उन्होंने 1 अगस्त से भूख हड़ताल पर जाने का फैसला किया और इस संबंध में 14 जुलाई को कमिश्नर को ई-मेल किया। सुहास गोखले को 29 मई, 2015 को शाम को गिरफ्तार किया गया था। उनका यों तो 31 मई को रिटायरमेंट होना था, लेकिन चूंकि 31 मई को रविवार था, इसलिए उनका फेयरवेल एक दिन पहले 30 मई को मरीन लाइंस पुलिस जिमखाना में किया जाना था। सुहास गोखले की गिरफ्तारी से काफी दिन पहले सिपाही धर्मराज कालोखे को सातारा पुलिस ने खंडाला में एक गोदाम में कई किलो एमडी ड्रग मिलने के आरोप में गिरफ्तार किया था। बाद में कालोखे के मरीन लाइंस पुलिस स्टेशन के लॉकर में छापा मारा गया, तो वहां भी जैसा कि पुलिस का आरोप था कि ड्रग जब्त की गई थी। गोखले व कई अन्य पुलिस वालों की गिरफ्तारी सिपाही कालोखे और बेबी पाटकणर से तथाकथित कनेक्शन के आरोप में हुई थी। सुहास गोखले ने बताया कि उन्हें इस केस में एक साजिश के तहत फंसाया गया, ‘क्योंकि जिस एमडी ड्रग को एनडीपीएस ऐक्ट में लाया गया, उसका ड्राफ्ट तैयार करने वाली टीम में खुद मैं भी शामिल था। इसलिए जिस कानून को बनवाने में मैंने खुद दिलचस्पी ली, उसका उल्लंघन मैं खुद क्यों करूंगा?’ गोखले कहते हैं कि उन्हें 29 मई, 2015 को जिस ड्रग्स के मामले में गिरफ्तार किया गया, क्राइम ब्रांच को कालीना फॉरेंसिक लैब से उसकी निगेटिव रिपोर्ट कई दिन पहले मिल गई थी कि यह ड्रग्स है ही नहीं। यह न तो यह एमडी है, न कोकीन, न हेरोइन। पता चला कि यह ड्रग न होकर अजीनो मोटो है जो चाईनीज खानों में स्वाद बढ़ाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। गिरफ्तारी से पहले मिली रिपोर्टसुहास गोखले के अनुसार, उनकी गिरफ्तारी से कुछ घंटे पहले 29 मई को सुबह क्राइम ब्रांच ने सेशन कोर्ट में इस ड्रग्स की रीसैम्पलिंग की अप्लीकेशन दी थी। गिरफ्तारी के अगले दिन यानी 30 मई को जब उन्हें किला कोर्ट में रिमांड के लिए पेश किया गया, तो बकौल गोखले, मुंबई क्राइम ब्रांच ने किला कोर्ट मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट से कालीना फॉरंसिक लैब की रिपोर्ट और सेशन कोर्ट की रीसैम्पलिंग की अप्लीकेशन वाली बात जानबूझकर छिपाई। यदि क्राइम ब्रांच वाले यह बात नहीं छिपाते, तो गोखले के अनुसार, उन्हें उसी दिन जमानत मिल जाती। लेकिन ऐसा हुआ नहीं और वह 11 दिन पुलिस कस्टडी में, जबकि 16 दिन जेल में रहे। 27 दिन बाद जब वह जमानत पर बाहर आए, तो उन्होंने मुंबई क्राइम ब्रांच वालों से कहा कि वह उन्हें हमेशा माफ कर देंगे, भूल जाएंगे यदि वे बड़ा दिल होकर स्वीकार कर लें कि किसी गलत सूचना पर या किसी गलतफहमी में उन्होंने उनके खिलाफ यह कार्रवाई की। पर गोखले कहते हैं, मुंबई क्राइम ब्रांच वालों ने उनकी नहीं सुनी। उन्होंने चार साल से ज्यादा उनके खिलाफ केस चालू रखा। हाईकोर्ट पहुंचा केस गोखले के अनुसार, जब सेशन कोर्ट ने मुंबई क्राइम ब्रांच की रीसैम्पलिंग की मांग खारिज कर दी, तो क्राइम ब्रांच वाले रीसैम्पलिंग के लिए हाईकोर्ट गए। वहां मुझ पर आरोप लगाया गया कि जब सिपाही धर्मराज कालोखे के मरीन ड्राइव पुलिस के लॉकर चेक किए जा रहे थे, तब गोखले ने सैम्पल्स चेंज किए होंगे। 'उसके बाद जब हाईकोर्ट ने रीसैम्पलिंग का ऑर्डर दिया, तो हम लोगों ने हाईकोर्ट से कहा था कि ट्रायल कोर्ट के सुपरविजन में यह रीसैम्पलिंग हो।' हाईकोर्ट तैयार हो गया। हाईकोर्ट से ऑर्डर मिलने के बाद एक महीने तक क्राइम ब्रांच वालों ने कोई हलचल ही नहीं की। तब जैसा कि गोखले का कहना है कि उन्होंने सेशन ट्रायल कोर्ट से कहा कि हाईकोर्ट का ऐसा- ऐसा आर्डर है, तो आप क्राइम ब्रांच वालों से कहिए कि कोर्ट में इसकी रीसैम्पलिंग करें। फिर ट्रायल कोर्ट में वह सैम्पल्स निकाले गए और फिर कोर्ट के आदेश पर वह सैम्पल्स चंडीगढ़ फॉरेंसिक लैब में भेजे गए। वहां से भी उसकी 4 मार्च को रिपोर्ट निगेटिव आई। दी की अर्जी उस वक्त कोर्ट ने सरकारी वकील को बोला कि चंडीगढ़ वाली रिपोर्ट क्राइम ब्रांच वालों को दे दो और उनसे कहो कि वह एक महीने में इस संबंध में अपनी क्लोजर या फाइनल रिपोर्ट पेश करें। गोखले कहते हैं, 'फिर भी मुंबई क्राइम ब्रांच वालों ने कुछ नहीं किया। फिर हम लोगों ने अप्लीकेशन दी कि क्राइम ब्रांच वाले कुछ नहीं कर रहे हैं, इसलिए इन्हें कोर्ट में बुलाया जाए। फिर क्राइम ब्रांच के सीनियर इंस्पेक्टर ने लिखित में अंडरटेकिंग दी कि वह एक महीने में फाइनल रिपोर्ट सौंप देंगे। वह एक महीना भी गुजर गया, पर फिर भी कुछ नहीं हुआ।' तब गोखले के अनुसार, 'हम लोगों ने कोर्ट में क्राइम ब्रांच वालों के खिलाफ मानहानि की अप्लीकेशन फाइल की। साथ ही हम लोगों ने एक और अर्जी दी कि यह सब हमें गलत तरीके से तकलीफ देने के मकसद से हो रहा है, इसलिए नार्कोटिक्स ऐक्ट के सेक्शन 58 के तहत संबंधित क्राइम ब्रांच अधिकारियों पर केस चलाया जाए। तब कोर्ट ने कहा कि हमने आपकी अप्लीकेशन रेकॉर्ड में ले ली है। फिर भी आप मुंबई पुलिस कमिश्नर को भी एक अप्लीकेशल दे दो।' इसलिए किया ई-मेल तब गोखले के अनुसार, वह मुंबई सीपी के ऑफिस गए। सीपी उस वक्त बिजी थे, इसलिए वह तत्कालीन मुंबई क्राइम ब्रांच चीफ के पास गए। क्राइम ब्रांच चीफ ने उनसे कहा कि वह इस मामले में हस्तक्षेप नहीं करेंगे, आप लोग चाहों, तो हाईकोर्ट जाओ। तब जैसा कि सुहास गोखले का दावा है कि उन्होंने 14 जुलाई को मुंबई सीपी को ई-मेल किया, कि वह 1 अगस्त से भूख हड़ताल पर जा रहे हैं। उसी के बाद उनके व चार अन्य पुलिस कर्मियों के पक्ष में मुंबई क्राइम ब्रांच द्वारा कोर्ट में क्लोजर रिपोर्ट पेश की गई।
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