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शरीर पर चकत्ते, दाने, खुजली...स्कैबीज तो नहीं

जीशान राईनी, लखनऊ लखनऊ इन दिनों की चपेट में आ रहा है। सरकारी अस्पतालों की ओपीडी में आने वाले करीब बीस फीसदी मरीज त्वचा के इस संक्रमण से पीड़ित हैं। बलरामपुर अस्पताल में तो इसके लिए दो वॉलिंटियरों की अलग से ड्यूटी तक लगा दी है, जो स्कैबीज के मरीजों को बताते हैं कि उन्हें क्या-क्या सावधानी बरतनी है। स्कैबीज में त्वचा पर लाल चकत्ते व दानों के साथ खुजली होती है। ये संक्रामक बीमारी है। यह बीमारी किसी व्यक्ति को हुई तो बड़ी आसानी से उसके परिवारीजनों में फैल जाती है। हर तीस साल में अटैकबलरामपुर अस्पताल के स्किन विशेषज्ञ डॉ उस्मानी ने बताया कि स्कैबीज का अटैक हर तीस साल में एक बार होता है। 1960 में यह फैला था उसके बाद 1990 में स्कैबीज का अटैक हुआ। 2019-20 भी स्कैबीज के अटैक का वर्ष माना जा रहा है। संक्रमित रोज पहुंच रहे केजीएमयू मेंसारकॉप्टीज स्केबियाई नामक माइट इस बीमारी कारण है। बीमारी फैलने पर लोग इलाज करवाते हैं तो यह माइट निष्क्रिय हो जाता है। दोबारा सक्रिय होने में 20 साल लगते हैं, तब इक्का-दुक्का केस आने लगते हैं। तीस साल का वक्त बीतते-बीतते यह चरम पर पहुंच जाता है। डॉ उस्मानी ने बताया कि स्कैबीज जिसे भी होती है उसके पूरे परिवार का इलाज किया जाता है। सिर्फ मरीज का इलाज करने से दूसरे सदस्यों को इसका इंफेक्शन फैल जाता है। साथ ही घर के सभी चादर और कपड़े गरम पानी में धोने से ही यह इंफेक्शन जाता है। ऐसा न होने पर इंफेक्शन लौटने की आशंका रहती है। बढ़ रहे हैं मरीजडॉ. उस्मानी ने बताया कि बलरामपुर की स्किन ओपीडी में रोजाना 1000 मरीज आते हैं, जिसमें 200 मरीज स्कैबीज के आ रहे हैं। केजीएमयू की स्किन एक्सपर्ट डॉ पारुल वर्मा हर दिन ओपीडी में 300 मरीज देखती हैं, जिसमें 50 से अधिक मरीज स्कैबीज के होते हैं। साथ ही इनकी संख्या में बढ़ोतरी देखी जा रही हैं। डॉगी पाले हैं तो रहें सतर्कडॉ उस्मानी बताते हैं कि यह माइट सामान्य तौर पर कुत्ते व बिल्लियों के शरीर में पाए जाते हैं। इन जानवरों से यह इंसानों के शरीर में पहुंचते है। सारकॉप्टीज स्केबियाई मानव शरीर में पहुंचते ही त्वचा के भीतर 'सुरंग' बनाते हैं, जिसे बरोज कहा जाता है। इसी टनल में ये प्रजनन करते हैं और पूरे शरीर में संक्रमण फैलाते हैं। आसान है इलाजडॉ उस्मानी ने बताया कि स्कैबीज के इलाज के लिए हम एक क्रीम लिखते हैं, जो सरकारी अस्पतालों में मुफ्त मिलती है। इसे रात में गर्दन के नीचे के पूरे शरीर में तेल की तरह लगाना होता है। क्रीम महज एक बार आठ घंटे तक लगाए रहने से यह ठीक हो जाती है। कई मरीज सिर्फ इंफेक्टेड हिस्से पर क्रीम लगाते हैं, जिससे वह पूरी तरह ठीक नहीं हो पाते। गंदगी से होता है इंफेक्शन डॉ पारुल वर्मा ने बताया कि गंदगी के कारण यह इंफेक्शन हो जाता है। ठीक से साफ सफाई रखी जाए तो इस इंफेक्शन से आसानी से बचा जा सकता है। ठंड में लोग कम नहाते हैं। यही वजह है कि यह बीमारी सर्दी में ही पांव पसारती है।


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