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महाराष्ट्र: पवार बनाम पवार, यह तो होना ही था

मुंबईअजित पवार द्वारा शरद पवार के खिलाफ बगावत कर भाजपा के साथ मिलकर सरकार बना ली। राजनीति के जानकारों के लिए यह अनहोनी नहीं है। इस बात का अंदेशा लोकसभा चुनाव के दौरान ही लोगों को हो गया था कि महाराष्ट्र के चर्चित राजनीतिक घरानों में से एक पवार परिवार में सब कुछ ठीक-ठाक नहीं चल रहा। यही वजह है कि अजित पवार की बगावत के बाद शरद पवार को जनता के सामने आकर यह कहना पड़ा यह सिर्फ अजित पवार का निजी फैसला है पार्टी का फैसला नहीं है। राजनीतिक विश्‍लेषकों के मुताबिक, महाराष्‍ट्र के सबसे ताकतवर राजनीतिक परिवार में यह पूरी लड़ाई लंबे समय तक मराठा राजनीति के दिग्‍गज रहे शरद पवार के राजनीतिक उत्‍तराधिकारी को लेकर है। शरद पवार करीब 80 साल के हो गए हैं। उनका स्‍वास्‍थ्‍य भी ठीक नहीं रहता है। शरद पवार की बेटी सुप्रीया सुले और अजित पवार के बीच राजनीतिक उत्‍तराधिकार को लेकर काफी दिनों से शह और मात का खेल चल रहा है। इस साल हुए लोकसभा चुनाव में परिवार के बीच चल रहा यह 'वॉर' खुलकर सामने आ गया था। पढ़ें- लोकसभा चुनाव के दौरान राकांपा प्रमुख शरद पवार ने ऐलान किया था कि वह मावल सीट से चुनाव लड़ेंगे। इसी लोकसभा सीट से बाद में अजित पवार के बेटे पार्थ पवार ने भी चुनाव लड़ने का दावा ठोक दिया। मावल सीट के लिए अजित पवार ने दबाव डाला, तो शरद पवार पीछे हट गए और उन्‍होंने कहा कि 'अगली पीढ़ी' को मौका दिया जाएगा। अजित पवार के बेटे पार्थ ने इस सीट से चुनाव लड़ा और उन्‍हें हार का सामना करना पड़ा। इसके बाद शरद पवार ने अपने एक दूसरे भतीजे को ज्‍यादा तरजीह देना शुरू कर दिया। ऐसे बढ़ीं दूरियां इसी बीच सुप्रिया सुले बनाम अजित पवार की लड़ाई और बढ़ गई। सुप्रिया सुले अपने पिता के संसदीय क्षेत्र बारामती से सांसद हैं और अजित पवार बारामती विधानसभा सीट से विधायक हैं। इस साल अक्‍टूबर में अजित पवार ने विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा दिया तो राजनीतिक गलियारों में पिछले काफी समय से चल रहे परिवार में चल रहे मतभेद के कयास को बल मिल गया। परिवार के इस कलह को ईडी के नोटिस से जोड़कर भी देखा जा रहा है। पढ़ें- माना जा रहा है कि अजित पवार ने राजनीतिक उत्‍तराधिकार को लेकर शरद पवार से मिली उपेक्षा के कारण भाजपा के साथ जाने का फैसला लिया है। दरअसल, एक वक्त ऐसा था जब लगभग यह तय माना जाने लगा था कि अजित पवार ही शरद पवार के राजनीतिक उत्तराधिकारी होंगे, लेकिन बाद में कहानी ने इतने ट्विस्ट लिए कि अजित को अपने हाथ से बाजी निकलती दिखने लगी है। 2006 से बदला गेम वर्ष 2006 पहले सुप्रिया सुले की एंट्री हुई और उन्होंने अपने को अच्छे से स्थापित भी कर लिया। इसके बाद अजित पवार के दूसरे चाचा का परिवार भी पॉलिटिक्स में आ गया। अजित अपने पुत्र को स्थापित भी नहीं कर पाए थे कि दूसरे चाचा के पौत्र ने अपना दावा ठोक दिया। अजित को लगने लगा कि शरद पवार दूसरे चाचा के परिवार यानी रोहित पवार को ज्यादा तव्वजो दे रहे हैं। राकांपा ने लोकसभा चुनाव के बाद महाराष्ट्र की भाजपा-शिवसेना सरकार के खिलाफ यात्रा निकाली थी, लेकिन उसका नेतृत्व अजित पवार को सौंपने के बजाय शरद पवार ने पार्टी के दो दूसरे नेताओं को दिया। बताया जाता है कि यहीं से अजित के दिल में यह बात पक्के तौर पर घर कर गई कि उन्हें किनारे लगाने की कोशिश हो रही है। पढ़ें- अजित पवार भी दांव के उस्ताद हैं अजित पवार राजनीति के कोई नए खिलाड़ी तो हैं नहीं, लिहाजा उन्होंने अपना दांव चलने के लिए ऐसा मौका चुना, जब राकांपा, शिवसेना के साथ मिलकर सरकार बनाने जा रही थी। इससे पहले शरद पवार ने उत्‍तराधिकार के इस विवाद को सुलझाने के लिए सुप्रिया सुले को केंद्र और अजित पवार को महाराष्‍ट्र का जिम्‍मा दिया था, लेकिन वह अपनी बात से पलट गए। बाद में शरद पवार ने राष्‍ट्रवादी युवती कांग्रेस लॉन्‍च किया और सुप्रिया को इसका चीफ बनाया। इससे राज्‍य में यह अटकलें तेज हो गईं कि शरद पवार अजित पवार की जगह पर अपनी बेटी को आगे बढ़ा रहे हैं। इन्‍हीं सबके बीच अजित पवार ने अपने चाचा को शिवसेना के साथ जाता देख एनसीपी को तोड़ भाजपा से हाथ मिला लिया।


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